जानते हैं, अनीता अहुजा के बिजनेस आइडिया ,किस तरह 30 लाख के आर्डर से 100 करोड़ का टर्नओवर की
आज हम जानते हैं भोपाल में जन्मी और दिल्ली में पली-बढ़ी अनीता अहुजा के बारे में अनीता दिल्ली में पली बढ़ी अनीता अहूजा के पिताजी एक स्वतंत्रा सेनानी थे अनीता ओझा ने अपना पूरा जीवन समाज सेवा करने में लगा दिया । अनीता ने जब एक कचरा बीनने वाले की हालत को देखा तो उसे उस पर दया आ गई तब से उसने कचरा बीनने वालों को जीवन को सुधारने का बीड़ा उठा लिया।न्होंने एक सामाजिक उद्यम की शुरुआत की जिसके तहत कूड़ा उठाने वालों से प्लास्टिक कचरा को एकत्रित कर उससे विश्व-स्तरीय हैंडबैग बनाया जायेगा। इस बिज़नेस में उतरने का उनका कोई प्लान नहीं था और न ही समाज-सेवा करने का। जिंदगी में कुछ नया करने के उद्देश्य से उन्होंने कचरा बीनने वालों के लिए काम करना शुरू किया।
अनिता ने अपने जैसे दोस्तों और परिवार वालों के साथ मिलकर अपने मोहल्ला में छोटे-छोटे प्रोजेक्ट लेने का विचार की उसके बाद एनजीओ ‘कंज़र्व इंडिया’ की शुरुआत की और इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत सारे इलाके से कचरा एकत्र करना शुरू किया। एकत्रित कि कचरे से रसोई का कचरा अलग कर उसे खाद बनाने के लिए पास के पार्क में रखा करती थी ।
अनीता का यह एनजीओ कंज़र्व इंडिया ने लगभग 3000 लोगों के साथ मीलकर रेसिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन की शुरुआत कीया। यह एसोसिएशन 2002 में एक फुल टाइम प्रतिबद्धता वाली संस्था बनी जिनके पास खुद के अधिकार थे।
ये तो हम सभी अभी देख रहे हैं कि हमारे समाज में अभी महिलाओं के लिए काफी समस्याएं हैं।एक एनजीओ किसी एक मुद्दे या समुदाय पर ही ध्यान दे पाता है। उसके बाद अनीता ने निश्चय किया कि वे कूड़ा बीनने वालों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए काम करेंगी। उन्होंने इंटरनेट से रीसाइक्लिंग टेक्नोलॉजी पर जानकारी हासिल की और अलग-अलग चीजों को करने की कोशिश की
अनीता सबसे पहले बुनाई का काम किया और कारपेट्स बनाये। परन्तु यह उत्पाद देखने में बहुत ही साधारण लगते थे, मेहनत भी ज्यादा थी और आर्थिक रूप से व्यावहारिक भी नहीं था और उन्हें बेचना भी बहुत ज्यादा मुश्किल था। कुछ दिनों तक अनीता इसी ने मेहनत करती रहे उसके बाद अनीता ने प्लास्टिक बैग विकसित करने का निर्णय लिया और यह काम अच्छा चल निकला। उन्होंने सोचा कि पहले वे प्लास्टिक बैग में आर्टवर्क करेंगी और फिर उसकी प्रदर्शनी लगायेंगी और तब जाकर पैसे बढ़ाने के लिए कोशिश करेंगी। उनके पति ने महसूस किया कि अनीता का यह प्लान काम नहीं करेगा। शलभ ने मशीन के द्वारा बड़े स्तर पर गढ़े हुए प्लास्टिक शीट्स तैयार करवाये। स्वचालित मशीन के द्वारा उसमें कलाकृति बनवाते और फिर उन्हें देखती थी प्रदर्शनी मैं लगाकर भी अच्छा करती थी।
आपको बता दें कि अनीता ने 2003 में कंज़र्व इंडिया ने प्रगति मैदान के ट्रेड फेयर में भाग ली थी।उसके बाद टेक्सटाइल मंत्रालय ने उन्हें एक छोटा सा बूथ दिया था और उन्हें इसमें 30 लाख का आर्डर मिला था।इसके बाद अनिता और शलभ ने यह निशचय किया कि वे कंपनी का स्वामित्व लेंगे क्योंकि खरीददार सीधे एनजीओ से आर्डर लेने के लिए इच्छुक नहीं थे। उसके बाद अनीता ने प्लास्टिक वेस्ट के लिए कूड़ा बीनने वालों को घर-घर जाकर कूड़ा लेना पड़ता था परन्तु वह अनुपात में कम ही रहता था और फिर उत्पाद बनाने के लिए विशेष रंग वाले प्लास्टिक की जरुरत होती थी। इसके लिए अनीता कबाड़ वालों से सम्पर्क कि और सीधे इंडस्ट्री से भी प्लास्टिक कचरा मंगवाने लगी थी।
जानकारी के लिए आपको बता दीजिए धीरे-धीरे यह धीरे-धीरे कंज़र्व इंडिया एक ब्रांड बन गया।उसके बाद 2020 तक कंज़र्व इंडिया का टर्न-ओवर 100 करोड़ से भी ज्यादा तक पहुंच गया है। आपको बता दें कि अनीता ने जैसा काम किया है उसके बारे में तो कभी किसी ने सोचा ही नहीं होगा आज कंज़र्व इंडिया के हैंडबैग्स पूरे विश्व में लोग खरीदते हैं ।